एक जिंदगी रूप हज़ार
ऐ जिंदगी तू भी ऐक शह है अजीब सी ! ना जाने कभी एहसास ऐसा होता है क्यों
लगता है छोटा सा सफर भी एक बोझ तेरी राहों में तेरे साथ चलते चलते
तो कभी तेरे दिए लम्हों की छोटी-छोटी यादें एक लंबे सफर का सहारा भी बन जाती है…
कभी चाहता है दिल कि लगा लूं तुझे सीने से मैं तो कभी दूर तुझसे जाने का करता है मन
कहने को तो तेरा रंग और रूप नहीं मगर हर रंग और रूप में तुझे मैंने पाया है
कभी खाक से मायूस रंग में देखा और कभी सात रंग के सपने तूने ही दिखाऐ
दोस्तों में भी पाया है तुम्हें और दुश्मनों में भी नजर आए हो तुम
कड़कती धूप में प्यासे होंट तुम्हारे ही थे और किसी पेड़ की सुकून छाया में तुम्हें ही पाया है
और क्या कहूं तुझे जिंदगी ! दोस्ती का नाम भी तो तूने ही सिखाया है मुझे
ऐक परछाई की तरह हर पल साथ मेरे चली है तू ! फूल भी तूने ही दिए और कांटो के साथ भी रहना सिखाया है मुझे
यह भी जानता हूं कि तेरा साथ हमेशा के लिए नहीं मगर
तू हकीकत है या महज़ एक ख्वाब यह बताते जा जरा
अजय