-विजय कुमार सिंह
हर रंग का अपना रंग जमे ,
यह होली का त्यौहार अलग |…
हर सुर का अपना राग सजे ,
इस होली का सुर-राग अलग |
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रँग लाल गुलाबी केसरिया ,
यह हरा बैंगनी आसमानी |
ये टेसू ,अबीर –गुलाल उड़े ,
ले धरती रँग सजती धानी |
हर रंग कोई इक अर्थ भरे ,
पर रंग मिले की बात अलग |
हर सुर का अपना राग सजे ,
इस होली का सुर-राग अलग |
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इक श्वेत रंग से सात रंग ,
सुर सात सजे सुर सरिता से |
निस्वार्थ भाव में जब यह मन ,
तब कौन बड़ा मानवता से |
हर साज़ की एक आवाज़ बजे ,
सुर साथ सजे का नाद अलग |
हर सुर का अपना राग सजे ,
इस होली का सुर-राग अलग |
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अलगाव की बातें अलग करो ,
यह सीमितता हर पल हारे |
व्यापकता का भी सुख जानो ,
अब खोल रहो मन के द्वारे |
इन दो हाथों क्या हाथ लगे ,
जब सब हाथों से हाथ अलग |
हर सुर का अपना राग सजे ,
इस होली का सुर-राग अलग |
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तुम जान है हिन्दुस्तान कहो ,
या भारत माँ की जय बोलो |
पर जो भी बोलो प्रेम से तुम ,
इक साथ सभी सुर में बोलो |
यह सुर ही अब हर ओर बसे ,
इस सुर की है आवाज़ अलग |
हर सुर का अपना राग सजे ,
इस होली का सुर-राग अलग |