मातृभूमि को समर्पित- विजय कुमार सिंह

(यह मेरा सौभाग्य है ,वह देश मेरी मातृभूमि है जिसने मनुष्य की चारों ही race (यदि आप इन्हें मानते हैं ) Negrito, Australoid, Caucasoid, Mongoloid को आश्रय दिया है | उन्हें पाला-पोसा है | मैं नहीं जानता और ऐसे देश कितने हैं? कोई है भी या नहीं ? आज़ यह वैज्ञानिक अकाट्य सत्य है कि हम आधुनिक मनुष्य अभी दो लाख साल पहले ही इस धरती पर अस्तित्व में आए हैं | सारी दुनियाँ के लोग आज़ से दो लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका के कुछ हजार लोगों की ही संतानें हैं | जब तक इस बात को हम हमेशा याद नहीं रखेंगे | हम मानव के एकत्व को नहीं सनझ पायेंगे | उसके बाद कब मानव में परिवर्तन आए ? यह बात भी genetic science ने काफ़ी कुछ स्पष्ट कर दी है | कब-कब कौन सी भाषा बनी इस पर भी काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है | migration कब ,किस तरह हुआ होगा ? यह भी अब काफ़ी स्पष्ट है | भले ही हर एक नयी शोध उसमें कुछ सुधार लाती है |इस कविता की कई पंक्तियाँ बहस का विषय हो सकती हैं | पर मनुष्य की एकता की भावना नहीं |)
ओ प्यारे भारत देश मेरे…

ओ प्यारे भारत देश मेरे क्या खूब रवानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |
अफ्रीका के पूरब से चलकर मनुज यहाँ पर जब आए,
तेरे पश्चिम सागर तट से फिर सुदूर पूर्व में बढ़ पाए |
अंडमान तक पहुँच गए वे ऐसे ही बढ़ते–बढ़ते ,
दो लाख साल पहले बने मनुज नेग्रीटो नाम से कहलाए |
पचास हजार वर्ष से ज्यादा यह कथा पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |


अफ्रीका से ही फिर से निकल इक दूजी लहर पुनः आई ,2 India
लहराते बाल भले ही इनके नेग्रीटो जैसी ही छवि पाई |
यह ही लहर तेरे उत्तर से पूर्वी एशिया तक जा पहुँची ,
सिंध से ओड़िशा छाने वाली यह रेस ऑस्ट्रेलियाड कहलाई |
चालीस हजार वर्ष से ज्यादा यह कथा पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |


पचास हजार साल पहले ही कुछ मानव में बदलाव हुए ,
जलवायु से स्टेपी में रहने वालों के रंग थोड़े से साफ़ हुए |
ऑस्ट्रेलियाड से ही मंगोलौइड और कौकसिऔइड रेस बनीं,
कौकसिऔइड सिन्धु नदी के तट पर आकर आबाद हुए |
बारह हजार वर्ष से ज्यादा यह कथा पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |


बारह हजार साल पहले नदियों पर कृषि का प्रादुर्भाव हुआ ,
शहरों और लिखाई का पाँच हजार साल पहले विकास हुआ |
कास्य काल की सिंधु सभ्यता तेरे उत्तर-पश्चिम में फ़ैल गई ,
सिंध में रहने वालों का एशिया भर से व्यापार हुआ |
दस हजार वर्ष से ज्यादा यह कथा पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |

….
घोड़ों से चलने वाले रथ लेकर कौकसिऔइड फिर आए ,
वे तीली वाले रथ दौड़ाते उन्नत काव्य परम्परा भी लाए |
इनकी ही हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ पूरे यूरोप एशिया में फैलीं ,
यहीं पर आकर आर्यों ने देवों के ऋचाओं में गुण गाए |
चार हजार वर्ष से ज्यादा यह कथा पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |


चार हजार साल पहले ही तेरे पूरब मंगोलौइड भी आन बसे ,
बीस हजार साल पहले ये ही रूस से हो अमरीका को चले |
अमेरिका में मूल अमरीकी बन सारे पूर्वी एशिया छाए,
देश मेरे तुझमें सब आकर हँसी-खुशी सारे ही पले |
तू ही सबका आश्रय दाता यह बात पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |


सभी विवाद तभी तक जिंदा जब तक हम यह सच न जानें ,
प्यार नाम है भेद भुलाना नफ़रत के सब भेद जताने |
किसी देश का रहने वाला रंग ,रूप ,धर्म कोई भाषा,
सबके सब नेग्रीटो से ही पैदा अफ्रीका की ही सब संतानें |
सबको तूने पाला पोसा यह ख्याति पुरानी तेरी है ,
धीरे-धीरे सदियाँ बीतीं क्या खूब कहानी तेरी है |
1.Negrito-“little black person” ;2. Australoid (southern+like) ,denoting the broad division of humankind represented by Australian Aboriginal peoples:3.Caucasoid (Caucasus+like) ,काकेशस -A region between the Black and Caspian Seas ;4.Mongoloid (mongol+like) ;5.प्रादुर्भाव-origin ;6.कास्य-bronze ;7.हिन्द-यूरोपीय- Indo-European |

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