विपुल गोयल, सिडनी

1. बचपन का ज़माना था, जिसमे खुशियों का ख़ज़ाना था !
माँ का मानना था, पापा का कंधे पर मेला दिखाना था !father
हम ज़िद करते रहते वो ज़िद मानते रहते..
मैं आज कुछ कर न पा रहा हूँ, बूढी हड्डीओं का सहारा बन न पा रहा हूँ !
जब पांच के थे स्कूल गए, जब पंद्रह के हुए तो कॉलेज गए, हर कदम पर दोनों ने सोचा होगा, हमारी आँखों का तारा है हमारे बुढ़ापे के सहारा है…
बैठकर अकेले मैं सिसकियाँ भरता हूँ और कोई पूछता है,
तो हकला जाता हूँ, बोल कुछ न पाता हूँ मैं अपने माता पिता को शत शत प्रणाम करता हूँ,
उस खुदा से भी ज़यादा उन्हें प्यार करता हूँ !

………………………

2. शायरी कई बार करनी छोड़ दी हैं हमने,
शायरी कई बार करनी छोड़ दी हैं हमने…

पर कम्ब्खत, यह दिल और कलम दोनों ही बेवफा हैं,
पर कम्ब्खत, यह दिल और कलम दोनों ही बेवफा हैं,

हैं हमारे…………….हैं हमारे…………….. पर बयां उनकी करते हैं !

हुसन उनका ,कलम हमारी !rose-paper-pen-300x180
ज़ुलहफे उनकी , स्याही हमारी !
शर्मना उनका, लिखाई हमारी !

बस हर पल जब कहते हैं …….अब न लिखेंगे !
बस हर पल जब कहते हैं ………अब न लिखेंगे !

वो सपनो मैं आते  हैं, इत्र कर कह जाते हैं !

बस इतना ही हमे चाहते हैं !

हम फिर शुरुवात करते हैं………………….. हम फिर शुरुवात करते हैं…

अपनी कलम और अपना दिन दोनों उनके नाम करते हैं !
अपनी कलम और अपना दिन दोनों उनके नाम करते हैं !

जनाब अब समज मैं आया, जनाब अब समज मैं आया,

कलम और दिल दोनों ही अपनी वफ़ा निभा रहे हैं..
कलम और दिल दोनों ही अपनी वफ़ा निभा रहे हैं…

पाक खुद की मोहब्बत मैं चार चाँद लगा रहे हैं !
चार चाँद लगा रहे हैं !

About Sahitya Australia

Being a Hindi poet, writer and teacher, I would like to promote Hindi in Australia. This blog will publish renowned and budding Hindi writers and poets' poems, articles and stories.
यह प्रविष्टि Uncategorized में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

टिप्पणी करे