अनिल वर्मा, सिडनी

 दोहे

छोटी सी थी अंजुरी, बहुत बड़ी थी चाह

जाने कैसे खो गई,  चौराहे पर राह ।

अधरों में खोते रहे अनजाने से छंद

सपने तेरे आँख नें पलकें हुई न बंद ।

जिससे भी झूला बंधा टूट गई वो शाख

आँगन में जलता रहा बिन फागुन-बैसाख ।

धूल भरे थे दिन यहाँ शूल भरी थी रात

पुतली से बादल बिंधे पलकों में बरसात

हुई दीप सी ज़िंदगी दीपशिखा सी सांस

जहां हुई थी प्रार्थना वही. जला मधुमास

अनिल वर्मा

About Sahitya Australia

Being a Hindi poet, writer and teacher, I would like to promote Hindi in Australia. This blog will publish renowned and budding Hindi writers and poets' poems, articles and stories.
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3 Responses to अनिल वर्मा, सिडनी

  1. Dr. Kavita Vachaknavee कहते हैं:

    अनिल जी के दोहे अत्यंत भावप्रवण व मारक लगे. उन्हें बधाई |
    आस्ट्रेलिया में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को नेट पर सहेजने का काम प्रशंसनीय है | आपको भी बधाई |

  2. पिंगबैक: आपके विचार | साहित्य ऑस्ट्रेलिया

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