साँच को आँच नहीं (सत्यमेव जयते)- संत राम बजाज, सिडनी


आज फिर मुझे झूठ बोलना पड़ा, अर्थात मुझे सच्चाई के मार्ग को छोड़ना पड़ा । हुआ यूँ कि मेरे हाथ से श्रीमती जी का फेवरिट संगे-मरमर का एक ‘स्टैचू’ गिर कर टूट गया।

”कया टूटा?” श्रीमती जी की गरजदार आवाज़ आई?

”कुछ नहीं, क्रीम की जार गिरी थी, बच गई ”

शुक्र कि इस से उन की तस्सली हो गई और हम ने शीघ्रता दिखाते हुए, टुकड़ों को सुप्र गुलु से चिपका कर एक तरफ रख दिया, ताकि बाद में दूसरी नई स्टेचु ला कर रख देंगे और किसी को कानों कान खबर तक न होगी।

पर आत्मा पर बोझ सा बन गया कि क्यों इतनी छोटी सी बात पर झूठ बोला, जो ज़्यादा दिन छिपा नहीं रहेगा। ‘झूठ बराबर पाप नहीं ‘ ऐसा कहा जाता है, पर फिर याद आया कि गीता में स्वयं  भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जो झूठ किसी की भलाई के लिये बोला जाये वह झूठ, झूठ नहीं है। उन की इस बात से तो धर्म राज युधिष्टर तक भी झूठ बोल गये थे। अर्जुन ने शिकंडी को ढाल बना कर भीषम पितामा को मार गिराया था। ऐसे और भी कई उदाहरण दिये जा सकते हैं।

तो भई मै ने अपनी भलाई के लिये और घर की शांति के लिये, भगवान श्री कृष्ण जी के बताए हुए इस ‘लूप होल’ का फायदा उठाते हुए, सच का दामन थोड़ी देर के लिये छोड़ दिया तो कोई पाप नहीं  किया।

भारत की हर कोर्ट कचहरी में गीता पर हाथ रख कर हर कोई क़सम खाता है कि ”मैं सच बोलूंगा और सच के सिवा कुछ नहीं बोलूंगा”, परंतु फिर भी हर कोई कितना सच बोलता है, यह आप भी जानते हैं। गीता का उपयोग भी शायद इस लिये किया जाता है कि इस से गवाह को भी एक बहाना मिल जाता है  कि  वह किसी के  भले के  लिये ही झूठ बोल रहा है। और वकील लोग सच की वे धज्जियाँ उड़ाते हैं कि तोबा ही भली। उन के पास पेशा वर गवाह होते हैं, जिन्हें जिधर की गवाही देने को कहें, दे देंगें । वकील का धर्म है अपने ‘क्लाएंट’ की भलाई, तो यदि वह किसी झूठ का सहारा लेता है तो वह तो अपने इस कर्म से अपने धर्म का पालण कर रहा है।

आप अपने सीने पर हाथ रख कर बताएं कि क्या आप ने कभी झूठ नहीं बोला है। क्या जब स्कूल कालिज में पढ़ते हुए भी नहीं, क्या स्ट्‌डी का बहाना कर पिक्चर देखने कभी नहीं गए? होमवर्क न करने के कितने झूठ टीचर के सामने बोले होंगे। ”झूठ बोले कौवा काटे” – सच सच बताईये (मेरा मतलब है असली वाला सच)! मन्दिर जाने का या सहेली से मिलने का बहाना-कुछ तो किया होगा! क्या कभी आप ने अपने १३, १४ साल के बच्चे को १२ का बताकर आधी टिकट नहीं ली? पति पत्नी में भी झूठ ही कई बार काम आता है।

झूठ ही एक मात्र ऐसा है जिस पर आप पूर्णतया विश्वास कर सकते हैं। ‘झूठे का मुँह काला सच्चे का बोल बाला’ और ‘सत्यमेव जयते’ मन को बहलाने के लिये हम कह  देते हैं जबकि चारों ओर झूठ की जय जयकार हो रही है । कहने को कह देते हैं कि झूठ के पाँव नही होते, यानि झूठ ज़्यादा देर नहीं चल सकता – पर भई,  झूठ को चलने की ज़रूरत ही क्या है, वह तो एरकॅंडीश्ंड गाड़ियों में घूमता है, वह तो हवाई जहाज़ों में  उड़ता है और वह भी र्फ्स्ट क्लास में न कि ‘कैटल’  क्लास में जिस में हम और आप जैसे आम आदमी सफर करते हैं। जी हाँ मैं आजकल के नेताओं की ही बात कर रहा हूँ – जो झूठे वादों से जंता का मन बहलाते हैं और अपनी ‘पेट पूजा’ में ऐसे लगते हैं कि उन्हें कोई शर्म भी नहीं आती कि देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता। इस की ताज़ा मिसाल, दिल्ली में हुई ‘कॉमनवैल्थ गेम्ज़’ हैं। एक से एक बढ़ कर घोटाले सामने आये और आ रहे हैं। जो ‘ट्रैडिमिल’ ७ लाख रुपयों में खरीदी जा सकती थी वह १० लाख में केवल ४५ दिन के किराये पर ली गई । पंजाबी की एक कहावत है,”चोरी दा कपड़ा ते डाँगाँ दे गज़”, यानि चोरी का कपड़ा बेचने के लिये लाठी को ही गज़ (मीटर) मान लेना चाहिये।  इंकवायरी बिठा दी गई है वह ‘करॅपशन’ की सच्चाई सामने लायेगी और क़सूरवार को सज़ा दी जायेगी, ऐसा सरकार का वादा है। जिन लोगों को ज़िम्मेदारी सौंपी थी, वह अपना पल्ला झाड़ कर साफ बच जाना चाहते हैं और ‘सत्यमेव जयते’ का नारा लगाते हुए बच भी जायेंगे,  क्योंकि ‘ इस हमाम में सब नंगे हैं’। यदि कोई दोषी नहीं मिला, जैसा कि ऐसी इंकवारियों में होता है, तो खेलों के शुभन्कर (मॉस्क्ट) ‘शेरा’ को क़सूरवार क़रार दे देंगे, क्योंकि शेरा – जंगली जानवर- सब कुछ खा गया और ये सब अधिकारी बेचारे  बेबस खड़े देखते रहे! हे भगवान ! झूठ की भी कोई हद होती है।

आप कहेंगे कि ”मेरा सिर फिर गया है जो ऐसी बह्की बह्की बातें कर रहा हूँ । देश का सौभाग्य है कि मनमोहन सिहं जी जैसे सच्चे और ईमान्दार प्रधान मंत्री हैं जो सच और झूठ का फैसला कर  के ही दम लेंगे ”। तो श्रीमान जी मैं आप से सहमत हूँ  कि वह बहुत ही भले और ईमानदार व्यक्ति हैं, पर उन की हालत उस कमल के फूल की तरह है जो गन्दे पानी में उगाता है या फिर उस ज़बान की तरह है जो ३२ दाँतों के बीच ही रह सकती है, उन से पंगा नहीं ले सकती।

गांधी जी भी सच के पुजारी थे – मानते हैं, लेकिन क्या उन के अनुयायी कॉंग्रेस के नेता उन के बताए हुए सच्चाई के मार्ग पर चल रहे हैं? बस उन की फोटो हर कोर्ट में लट्‌काई जाती है  आरै  साथ में लिखा दिया जाता है, ” सत्यमेव जयते”। शायद लोगों को यह  चेतावनी दी जा रही हो कि यदि सच बोला तो तन पर केवल गांधी जी की तरह धोती ही रह जायेगी। मैं तो यह समझता हूँ कि यह गांधी जी के साथ एक भद्दा सा मज़ाक़ है।

मैं पहले ही कह चुका हूँ कि भगवान श्री कृष्ण इस बात की इजाज़ित देते हैं कि ज़रूरत पड़ने पर झूठ बोला जा सकता है, पर अब उस से भी पहले की बात करने जा रहा हूँ, जब स्वयं विष्णु भगवान को मोहिनी का रूप धारण करना पड़ा ताकि समुद्रमंथन से मिले अमृत को केवल देवता लोग ही पी सकें । और जब र्मयादा पुरषोत्तम श्री राम चंद्र जी को बाली को मारने के लिये झूठ और छल का सहारा लेना पड़ा था। अपने मित्र और बाली के भाई सुग्रीव की सहायता के लिये या एक अधर्मी को समाप्त करने  के लिये उन्हों ने बाली पर छिप कर वार किया था।

आजकल  अमरीका क्या कर रहा है ?  भूतपूर्व राष्ट्रप्ति बुश साहिब ने शायद उल्टी रामायण पढ़ी थी जो सद्दाम हुसेन के ज़ुल्म से इराक़ की जंता को बचाने निकल  पड़े। दुनिया का सब से बड़ा झूठ कि सद्दाम के पास ‘भयानक हथियार हैं’, का सहारा ले उस को फांसी पर लट्‌का दिया । अफगानिस्तान में उसामा बिन लादेन को ढूँढ्‌ते हुए जा पहुंचे सच्चाई का  परचम लेकर और वहीं टिक गये। वास्तव में उन के क्या इरादे हैं केवल वे ही जानते हैं । उन्हें तो ‘इरंट्‌नेशंल पोलिसमैन’ बनने की कुछ आदत सी हो गई है।

कह्ने का तात्पर्य यह है कि सच और झूठ में एक बहुत ही बारीक सी रेखा है -चाहे जिधर लांघ जाओ।

हिटलर के propaganda minister Gobbles का कहना था कि झूठ को बार बार दुहराने से वह सच लगने लगता है।

आजकल के क्लयुग में भला केवल सच के सहारे जीना पोसीबल है क्या ? आप  सैकंड-हैंड कार खरीदने गये हैं – सेलज़्मैन आप को तरह तरह के सब्ज़ बाग दिखाते हैं – ”देखीये यह कार केवल २० हज़ार किलोमीटर चली हुई है, एक लेडी ड्राईवर चलाती थी, घर से शापिंग तक, कभी कोई एक्सीडेंट नहीं- यह सुन आप चैक काटने को तैयार हो जाते हैं … ज़रा रुकिये, अब उसी सेल्ज़मैन पर सच बोलने का दौरा पड़ा होता और आप से यह कहता ‘जी वास्तव में यह कार एक लाख किलोमीटर चली हुई है पर हमारे बॉस ने मीटर पीछे घुमा कर २० हज़ार कर दी है और इस के दो एक्सीडैंट हो चुके और यह जो चमक हैं, यह ताज़ा पेंट किया है जिस के नीचे  रस्ट लगी हुई है”,  तो कया आप यह कार खरीदेंगे क्योंकि यह सेल्ज़मैन बड़ा ईमानदार और सच्चा है? नहीं, कभी नहीं ।

‘साँच को आँच नहीं’ खोखला नारा लगता है यानि झूठ का पलड़ा ही भारी रहेगा। सत्यवादी राजा हरीशचंद्र की बात याद है न आप को? उन की सच बोल बोल कर क्या दुर्गति हुई थी।

आप शायद यह भी कहें कि अंत में विजय सत्य की ही होती है – होती होगी प्रंतु किस के पास वह अंत देखने का समय है या हिम्मत है…

मिय्याँ गालिब के शब्दों में,” कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक”।

तो आओ सच की समाधी पर फूलों की मालाएं चढ़ायें और ‘सत्यमेव जयते’ के झूठे नारे लगायें ।


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